Oct 16, 2017

आओ खूबसूरत चरित्रों की फिक्र करें-दीपकबापूवाणी (Aao Khubsurat charitron ki Fikra kahen-DeepakBapuwani)

जिससे डरे वही तन्हाई साथ चली,
प्रेंमरहित मिली दिल की हर गली।
दीपकबापूहम तो चिंगारी लाते रहे
अंधेरापसंदों को नहीं लगी रौशनी भली।
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सिंहासन के सौदे से परे
भले लोग वादे नहीं करते।
जनाब! जीत जाते जो जनमत
पूरे करने के इरादे नहीं करते।

उमस का मौसम बंद हवायें
आओ कुछ पल उदास हो जायें।
दीपकबापूकब तक तक रहें बदहवास
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अपने ही दिल का हाल जाने नहीं,
दिमाग की भी चाल माने नहीं।
दीपकबापूआभासी इलाके के बेगाने
झूठे सौदे का जाल जाने नहीं।
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अपने दिल के किस्से
चौराहों पर क्या बयान करें
लोग कान बंद किये हैं।
आंखें भी मतलब से सिये हैं।
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बदसूरत धोखबाजों का क्यों जिक्र करें,
आओ खूबसूरत चरित्रों की फिक्र करें।
दीपकबापूसपनों के बाज़ार में
लालच से परे दिल बेफिक्र करें।
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Aug 27, 2017

मन के खेल पर भारी धन का चक्कर-दीपकबापूवाणी (man ke khet par dhan ka Chakkar-DeepakBapuwani)

मन के खेल पर भारी धन का चक्कर, वैभव रथ पर सवार देव से लेता टक्कर।
‘दीपकबापू’ आदर्श की बातें करते जरूर, रात के शैतान दिन में बनते फक्कड़।।
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भक्ति व्यापार के लिये जो घर तजे हैं, चंदे से कमाये मुफ्त पर उनके बजे हैं।
‘दीपकबापू’ मेले में भीड़ आती भक्तों की तरह, हर रंग के भगवान वहां सजे हैं।।
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हृदय में रस से पत्थर भी
गुरु हो जाते हैं।
दर्द के मारे रसहीन
जहां कोई मिले
रोना शुरु हो जाते हैं।
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गरीबों के उद्धार के लिये
जो जंग लड़ते हैं।
उनके ही कदम
महलों में पड़ते हैं।
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दिल की बात किससे कहें
सभी दर्द से भाग रहे हैं।
किसके दिल की सुने
सभी दर्द दाग रहे हैं।
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ईमानदारी से जो जीते
गुमनामी उनको घेरे हैं।
चालाकी पर सवार
चारों तरफ मशहूरी फेरे है।
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जहां शब्दों का शोर हो
वह शायर नहीं पहचाने जाते।
जहां जंग हो हक की
वहा कायर नहीं पहचाने जाते।
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समय का खेल 
कभी लोग ढूंढते
कभी दूर रहने के बहाने बनाते।
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राजपथों की दोस्ती
वहम निकलती
जब आजमाई जाती है।
गलियों में मिलती वफा
जहां चाहत जमाई नहीं जाती है।
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कंधे से ज्यादा  बोझ दिमाग पर उठाये हैं,
खाने से ज्यादा गाने पर पैसे लुटाये हैं।
मत पूछना हिसाब ‘दीपकबापू’
इंसान के नाम पशु जुटाये हैं।
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नाम कमाने मे श्रम होता है,
बदनामी से कौन क्रम खोता है।
‘दीपकबापू’ कातिलों की करें पूजा
शिकार गलती का भ्रम ढोता है।।
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हम तेरे दर्शन करते रहेंगे
तू दिख या न दिख।
हम तेरा नाम कहते रहेंगे
तू लिख या न लिख।
तेरी दी जिंदगी तेरे नाम लिखेंगे
तू दिख या न दिख।
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Jul 6, 2017

जेब में पैसा कम पर सपने अमीरी से सजे हैं-हिन्दीक्षणिकायें (zeb mein paisa kam par sapne se saje hain-HindiShort poem}

हमारा विश्वास छीनकर
उन्होंने अपनी आस खोई है।
अपने ही पांव तले
तबाही वाली घास बोई है।
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जेब में पैसा कम
पर सपने अमीरी से सजे हैं।
वातानुकूलित मॉल में
ग्राहक सोचता सामान
देखने में कितने मजे हैं।
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समस्या खड़ी कर
हल का सवाल पूछने आते हैं।
पत्थर दिल के बुत
हवा से जूझने जाते हैं।
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मन में बाज़ार से
खरीददारी की चाहत
पर जेब खाली है।
ज़माने ने जिंदगी
उधार पर ही टाली है।
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मिलती खुशी उधार से
चाहे जहां से हम मांग लेते।
नकद में सस्ता मिला चैन
इसलिये चाहतें यूं ही टांग देते।
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बस्तियों में आग लगा देते हैं
अमन में जंग जगा देते हैं।
जज़्बात के सौदागर
इंसानों को दगा देते हैं।
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Jun 25, 2017

चोर की बारात में प्रहरी में आते हैं-दीपकबापूवाणी (Chor ki barat mein prahari aate hain-DeepakBapuWani0

धन संपदा के लिये भक्ति करें, कामयाबी से अपने ही मन में आसक्ति भरें।
‘दीपकबापू’ चढ़े जाते महंगे मंच पर, स्वार्थ के सिद्ध प्रेम से अनासक्ति करें।।
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खेल में भी जुगाड़ चलने लगी है, सट्टे की झोली में हार जीत पलने लगी है।
‘दीपकबापू’ धरा छोड़ पर्दे पर देव बसाये, नजरों की ही अगरबत्ती जलने लगी है।।
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सलामत है हाथ जिसमें हथियार नहीं है, गद्दारी से बचा जिसके यार नहीं है।
‘दीपकबापू’ सोच रखीं जमीन पर सदा, आकाश का उनके कंधे पर भार नहीं है।।
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चोर की बारात में प्रहरी में आते हैं, फूहड़ों की महफिल अक्लमंद सजाते हैं।
‘दीपकबापू’ चरित्र का प्रमाण नहीं जांचते, सभी अपने गिरेबां से घबड़ाते हैं।।
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आशा निराशा के बीच लोग झूले हैं, बुलाते कमजोरियां अपनी ताकत भूले हैं।
‘दीपकबापू’ दलालों से करते सुलह, मन उड़े पर पांव चले नहीं पेट जो फूले हैं।।
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आतंक के व्यापार में बहुत लोग पलते, हर वारदात पर विज्ञापन के दिये जलते।
‘दीपकबापू’ हथियारों का खोला कारखाना, शांति कराने हवाई जहाज में चलते।।
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पसीने के मालिक खुले आकाश में सोये हैं, पूंजपति वह जो ठगी के बीज बोये हैं।
‘दीपकबापू’ पहरेदार नाम अपना धर लिया, मगर लुटेरों के आभामंडल में खोये हैं।।
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लोहे लकड़ी के सामान में आसक्ति रखते, ऊंचे दाम चुकाकर भक्ति रस चखते।
‘दीपकबापू’ रूप स्वर गंध की पहचान नहीं, चिंत्तन मे अहंकार का भाव रखते।।
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दिल में मजे की आग जला देते हैं, वासना में देशभक्ति भी चला देते हैं।
‘दीपकबापू’ सौदागरों के चालाक ढिंढोरची, इंसान की अक्ल गला देते हैं।।
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चाहतों में हर पल इंसानी मन डूबा है, बहला लो हर तरह फिर भी ऊबा है।
‘दीपकबापू’ विलासिता में सुख ढूंढता, भीड़ में खड़े फिर भी अकेले में डूबा है।
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बाज़ार में लगे खरीददारों के मेले, भीड़ दिखती पर स्वार्थ से खड़े सभी अकेले।
‘दीपकबापू’ जो मिले उसे यार कहें, जानते हुए कि दाम पर वफा के लगे हैं ठेले।।
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अपनी नाकामी पर कसूर पराया बतायें, मन में विष ज़माने का सताया जतायें।
‘दीपकबापू’ मतलब से संबंध जोड़ें तोड़ें, काली नीयत से अपनी काया ही सतायें।।
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Jun 11, 2017

गर्मी की तपती धूप देह को जलाती है-हिन्दी में छोटी क्षणिकायें (Garmi ki Tapti Dhoop deh ko jalate hai-ShortHindiPoem)

मौसम के साथ दिल के
मिजाज भी बदल जाते हैं।
जिंदगी से यूं ही निभायें
हालातों से ख्याल भी
बदल जाते हैं।

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जिंदगी के चलते दौर
हर बार साथी बदल जाते हैं।
कुछ की यादें साथ चलतीं
कुछ भूले में बदल जाते हैं।
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हर बार नयी काठ की हांडी
आग पर चढ़ जाती है।
नया रसोईया देखकर
स्वाद की उम्मीद जो बढ़ जाती है।
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बाज़ार लगा है
पशु पक्षी क्या
इंसान भी बिकते हैं।
दुकानों में अमीर
ग्राहक और विक्रेता
हमेशा ही दिखते हैं।
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नाम के राजा
काज तो ऊपरवाला ही
चला रहा है।
लोभियों ने शहर में लगाई आग
कहते हैं भूखा जला रहा है।

अपना हमारा दुश्मन
एक दिखाकर हाथ मिलाया।
हमारे कंधे पर शिखर चढ़े
उससे अपना गला मिलाया।
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कहीं जीतने की जंग
कहीं खरीद के रंग
जमीन की लड़ाई जारी है।
कभी बंदूकधारी जीते
कभी धनी की बारी है।
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गर्मी की तपती धूप
देह को जलाती है।
पीड़ा इतनी कि
दिल में पल रहे
दर्द को भी गलाती है।
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चिंताओं में डूबे हैं
चित्तक कहलाते हैं।
दुनियां का डर बेचकर
सबका दिल बहलाते हैं।
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उनके नाम के सहारे ही
जिंदगी भर चलते रहे।
हालात बिगड़े तब आया ज्ञान
भारी भ्रम में पलते रहे।

संगमरमर के पत्थर से बने
महलों में भी क्या रखा है।
जब शब्दज्ञान का हर रस
दिल दिमाग ने चखा है।
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पर्दे पर सपने बेचने वाले
हांका लगाते हैं।
लटकायें सुंदर पर खाली झोली
पर चालाकी का टांका लगाते हैं।
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मांगते तो सामनों का
ढेर जुटा लेते।
चाही दर्द की दवा
मिलती जाती बेबसों में
ढेर लुटा देते।
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पैसे पद प्रतिष्ठा के
तख्त पर बैठे
क्या गरीब का भला करेंगे।
वातानुकूलित कक्ष में पैदा ख्याल
धरा पर क्या चला करेंगे।
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आज भी पापों के घड़े
कभीकभी फूट जाते हैं।
यह अलग बात भरने वाले
जमानत पर छूट जाते हैं।
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फरिश्ता बनने की चाहत
बंदे को मसखरा बना देती है।
त्याग के तपयोगी को
आग सोना खरा बना देती है।
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छात्र किसान जवान के नाम
झंडा लगा देते।
भीड़ में इंसान जुटते
भेड़ की तरह
नारा लगाकर जगा देते।

Apr 3, 2017

गज़ब उनकी खामोशी दिल को लुभाती है-हिन्दीक्षणिकायें (Gazab unki Khamoshi lubhati hai-ShortHindiPoem)

नाव चली लहरों से लड़ने
किनारा मिला नहीं
मांझी ने ही किया छेद
इसलिये डूबने का
हुआ गिला नहीं
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गज़ब उनकी खामोशी 
दिल को लुभाती है।
तारीफ  के काबिल
उनका नज़र डालना
जो फूल भी चुभाती है।
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नाम तो बड़े सुने
छोटे दर्शन से सिर धुने।
थक गये यह सोच
कब तक ख्वाब बुने।
..............
बंद कमरों की गप्पबाजी
कभी बाहर नहीं आती।
राई को ढके पर्वत
यही राजनीति बताती।
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घर से बाहर आते
पर दिमाग के द्वार बंद हैं।
ताजगी की अनुभूति में
उनकी संवेदनायें मंद हैं।


दिल पढ़ा नहीं
आंखें देखकर
श्रृंगार पद रच डाला
अर्थरहित स्पंदहीन
शब्द हुआ मतवाला।
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समाज सेवा के ठेके
वादों पर मिल जाते हैं।
नकली जुबानी जंग से
लोग यूं ही हिल जाते हैं।
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बंदर जैसी उछलकूद
करते रहो
लोग समझें बंदा व्यस्त है।
कुछ नहीं कर पाओगे तुम
इसलिये हौंसला बढ़ाओ
उन लोगों का
जो पस्त है।
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अपनी बात इशारों में
शेर कहकर लिखते हैं।
मन भी होता हल्का
शालीन भी दिखते हैं।
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विकास के रास्ते
तांगे से कार पर
सवार हो गये।
जज़्बातों से ज्यादा
सामानों के यार हो गये।
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एकांत मे भी अकेले
कहां होते हम
अपना अंतर्मन जो साथ होता।
मौन से मिलता वह
वरना कोने में बैठा रोता।


चांद और सूरज से
तुलना न कीजिये।
अंधेरा को चिराग ही पहचाने
रौशनी का मजा यूं ही लीजिये।
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घर सामान से भरे हैं,
दिल जज़्बात से डरे हैं।
शोर करते भीड़ में लोग
अकेलेपन से डरे हैं।

Mar 22, 2017

हर ताबूत में एक बुत भरा है-दीपकबापूवाणी (Har tabut mein ek but Bhara hai-DeepakBapuWani)

जहान के सहारे से अपनी जरुरत धरे, दिल में मदद का ख्याल रखे परे।
‘दीपकबापू’ बंजर जमीन पर खड़े होकर, श्रमहीन सोना पाने की चाह करे।।
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आमजन जन्मदिन याद नहीं रखता, खास की तरफ हर कोई तकता।
‘दीपकबापू’ लिख कथा मिटा देते, प्रेम शब्द कोई हिसाब नहीं रखता।।
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घुमाफिरा कर अपनी बात कहते हैं, सच के साथ डरकर रहते हैं।
‘दीपकबापू’ कायरों के जमघट में, सभी मुर्दों की कहानी कहते हैं।।
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हर ताबूत में एक बुत भरा है, जिंदगी में हारने से हर कोई डरा है।
‘दीपकबापू’ मस्ती खरीदें बाज़ार से, फिर भी दिल बोरियत में मरा है।।
-
सच है लातों के भूत बातों से न माने, जब प्यार करो तो घूंसा ताने।
‘दीपकबापू’ मानवाधिकारों के चिंतक, भले बुरे इंसान में फर्क न माने।।
--------

तिलक लगाकर चलें भक्त कहलाते, नृत्य गायन से दिल आसक्त बहलाते।
‘दीपकबापू’ भक्ति की पहचान रंग बनाये, तस्वीर दिखा सदा वक्त टहलाते।।
----
उनके अपने दिमाग एकदम हिले हैं, दूसरे इंसानो से बहुत शिकवे गिले हैं।
‘दीपकबापू’ घर से निकले लालच के साथ, सामने ताकतवर लुटेरे मिले हैं।।
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जीतें तो  तेजी से अपना कोष  बढ़ायें, हारें तो मैदान पर रोष चढ़ायें।
‘दीपकबापू’ खिलाड़ी होकर अक्ल खो दी, कर्म का भाग्य पर दोष मढ़ायें।
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सिंहासन पाने के लिये चलाते अभियान, जलकल्याण पर देते नये बयान।
‘दीपकबापू’ पांव पर चलाते बितायी जिंदगी, दर्द भूल जाते चढ़ते ही यान।।
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Feb 12, 2017

सौदे की वफादारी एक साल-हिन्दी व्यंग्य कविता (saude ki vafadaari ek saal-HindiSatirePoem)


सामानों से शहर सजे हैं
खरीदो तो दिल भी
मिल जायेगा।

इंसान की नीयत भी
अब महंगी नहीं है
पैसा वफा कमायेगा।

कहें दीपकबापू बाज़ार में
घर के भी सपने मिल जाते
ग्राहक बनकर निकलो
हर जगह खड़ा सौदागर
हर सौदे की वफादारी 
एक साल जरूर बतायेगा।
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एक दूसरे पर
सब लफ्जों से बरसे हैं।
जुबान पर गालियों के 
एक से बढ़कर एक फरसे हैं।

नासमझों की भीड़ खड़ी
कब जंग होगी 
कब बहेगा लहू
दूश्य देखने के लिये
सभी बहुत तरसे हैं।
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Jan 16, 2017

फिल्म और क्रिकेट में सब चलता है यार-हिन्दी व्यंग्य (Everithing good in Hindi Film and Cricket Match-Hindi Satire Article)

            पहलवानी पर बनी फिल्म में नायिका का अभिनय करने वाली ने कहा है कि ‘मुझे कश्मीर के युवा अपना आदर्श न समझें।’
           उसने इस फिल्म को नारी विषयों पर प्रेरक मानने वाले लोगों के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है। हमने टीवी, अखबार तथा सामाजिक जनसंपर्क पर इस फिल्म के गुणगान करने वालों पर तरस आ रहा है।  बिचारे क्या कह रहे थे कि इस प्रेरणा से नारियों को प्रेरणा लेनी चाहिये और अभिनय करने वाली नायिका ने ही कहा दिया कि ‘इस फिल्म को भूल जाओ।’
          उसने बहुत समय बाद यह बात कही है। अब तक भारतीय दर्शक अपना पैसा खर्च कर चुके हैं।  निर्माता निर्देशक पैसा वसूल कर चुके हैं। यही लोग दांव पैंच लगाकर उसे पुरस्कार भी दिलाते रहेंगे। इस फिल्म का चाकलेटी नायक अंतर्राष्ट्रीय पहुंच वाला है इसलिये संभावना है कि यह ऑस्कर भी चली जाये।  हमें शुरु से ही पर्दे पर अभिनय करने वालों की वक्तव्यकला के साथ बौद्धिक क्षमता पर भरोसा नहीं है। वह दूसरे का लिखा पढ़ते हैं जिसकी कीमत भी वसूल करते हैं। उनमें आदर्श या प्रेरणा ढूंढने वाले भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में वर्णित सिद्धांतों को नहीं जानते। हम तो देह सहित उपस्थित मनुष्य को ही कल्पित मानते हैं तो फिर पर्दे के पात्रों में सत्य ढूंढने की तो सोच भी नहीं सकते। 
                  उस नायिका ने वहां की मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद-जिसके बाद सामाजिक संपर्क प्रचार माध्यमों में उस पर छींटाकसी हुई थी-उठे बवाल पर उसने माफी मांगी है। दरअसल उसने वहां की मुख्यमंत्री से मुलाकात पर माफी मांगी है-जिसे प्रचार माध्यमों के विद्वान अपने अपने ढंग से ले रहे हैं। तय बात है कि हम भी अपनी ढंग से ही लेंगे।
              हमें उसका माफीनामा उसकी फेसबुक पोस्ट की तरह  शुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित लगता है। अगर कश्मीर के युवा युवतियां उसे आदर्श मान रहे थे तो  वहां उपस्थिति धार्मिक विघटनकारियों के लिये चिंता की बात हो सकती -जिन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिये  भारत में मौजूद तत्वों से भी मदद मिलती है। वह एक सफल फिल्म की अभिनेत्री है अतः उसके पास इतना धन तो आ गया होगा कि वह मुंबई में बस जाये पर जैसा कि उसने माना कि वह आयु में छोटी है इसलिये माता पिता के बिना यह संभव नहीं है।  यकीनन उसके माता पिता पर भी कहीं से दबाव आया होगा-अब भले ही उस नायिका के बयान में कहा जाये कि उस किसी का दबाव नहीं है। उसने अपने बयान में पिछले छह महीनों की हालत का जिक्र किया है-अधिक विवरण नहीं दिया-जिससे यह साफ लगता है कि पत्थरबाजी की घटना के बाद वहां जो तनाव व्याप्त हुआ है वह उसकी तरफ इशारा था।
                 इस बात की संभावना भी लगती है कि उसके संरक्षक अब फिल्म उद्योग को अप्रत्यक्ष रूप से यह समझा रहे हों कि अब दूसरी फिल्में भी दो वरना हमारी अपनी एक मौलिक विचाराधारा भी है जिस पर हम चल सकते हैं। उसे कोई दूसरी फिल्म मिली है इसकी जानकारी नहीं है इसलिये अनुमान के आधार पर यह हम कह रहे हैं।  पहलवानी में भारत के लिये नाम रौशन करने वाली जिस वास्तविक नायिका की कहानी पर यह फिल्म बनायी गयी थी उसने भी मामला समझे बिना पर्दे की नायिका को समर्थन दिया पर हमारी समझ में नहीं आया कि इसकी जरूरत क्या थी जो प्रचार प्रबंधकों ने उससे सवाल किये। धरातल के यह वास्तविक नायक पर्दे के अभिनेताओं का खेल नहीं जानते-यह बात तय है। 
               हमें तो फेसबुक पर पहले पोस्ट डालने फिर उसे हटाने के प्रकरण में नारियों की समस्याओं से अधिक राजनीति  के साथ ही व्यवसायिक कौशल की चाल भी दिख रही है और भाई लोग इसे परंपरागत ढंग से वहीं ले जा रहे हैं। अभी बताया जा रहा है कि उसने फेसबुक से अपनी इस संबंध में सारी पोस्ट हटा ली है। तब सवाल आता है कि दबाव पहले था या अब है।  समझना मुश्किल हो रहा है कि अगर पहले यह दबाव नहीं होता तो फेसबुक पर माफीनामें वाली  पोस्ट डालती क्यों? या अब यह समझाया जा रहा है कि अब दबाव पड़ा तो हटाई है। वरना अगर पहले दबाव इतना प्रभावी होता तो अब हटाती क्यों?  कहीं यहां प्रचार माध्यमों में अपना नाम लाने की कोशिश नहीं है। सच यह है कि हम इस फिल्म की नायिका का नाम तक नहीं जानते थे। न फिल्म देखी न देखने का इरादा है।  ज्यादा माथापच्ची करने पर हमारे दिमाग में एक ही नारा आता है जिसके जनक हम ही हैं-फिल्म और क्रिकेट में सब चलता है यार!