किसी से भी मांग लेते,
इज्जत छीनने की चीज होती तो
किसी से भी छीन लेते।
लोग नहीं सुनते अपने ही दिल की बात,
मारते हैं अपने ही जज़्बात को लात,
दिमाग को ही अपना मालिक समझते,
बड़े अक्लमंद दिखने को सभी हैं तैयार
पर लुटती होती कहीं अक्ल तो सभी लूट लेते।
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कुछ पल का साथ मांगा था
वह सीना तानकर सामने खड़े हो गये।
गोया अपनी सांसे उधार दे रहे हों
हमें अपनी जिंदगी को ढोने के लिये
जो ऊपर वाले ने बख्शी है,
फरिश्ता होने के ख्याल में
वह फूलकर कुप्पा हो गये।
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ताली दोनों हाथ से बजती है,
दिल की बात दिल से ही जमती है,
हाथ तो दो है
चाहे जब बजा लेंगे,
पर दिल तो एक है क्या करेंगे?
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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