Jan 24, 2010

केवल दस्तखत का काम किया-हिन्दी शायरियां (kewal dastkhat ka kam-hindi shayriyan)

वफा हम सभी से निभाते रहे

क्योंकि गद्दारी का नफा पता न था।

सोचते थे लोग तारीफ करेंगे हमारी

लिखेंगे अल्हड़ों में नाम, पता न था।

------

राहगीरों को दी हमेशा सिर पर छांव

जब तक पेड़ उस सड़क पर खड़ा था।

लोहे के काफिलों के लिये कम पड़ा रास्ता

कट गया, अब पत्थर का होटल खड़ा था।

-------

जुल्म, भूख और बेरहमी कभी

इस जहां से खत्म नहीं हो सकती।

उनसे लड़ने के नारे सुनना अच्छा लगता है

गरीबी बुरी, पर महफिल में खूब फबती।

--------

हमारे शब्दों को उन्होंने अपना बनाया

बस, अपना नाम ही उनके साथ सजा लिया।

उनकी कलम में स्याही कम रही हमेशा

इसलिये उससे केवल दस्तखत का काम किया।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

-------------------------------------

यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

No comments: