Jan 27, 2010

एक बूंद पानी भी नहीं सह पाते हैं-हिन्दी व्यंग्य कविताएं(ek boond pani-hindi vyangya kavitaen)

अपने गम और दूसरे की खुशी पर मुस्कराकर

हमने अपनी दरियादिली नहीं दिखाई।

चालाकियां समझ गये जमाने की

कहना नहीं था, इसलिये छिपाई।

--------

अपनी तकदीर से ज्यादा नहीं मिलेगा

यह पहले ही हमें पता था।

बीच में दलाल कमीशन मांगेंगे

या अमीर हक मारेंगे

इसका आभास न था।

----------

रात के समय शराब  में बह जाते हैं

दिन में भी वह प्यासे नहीं रहते

हर पल दूसरों के हक पी जाते हैं।

अपने लिये जुटा लेते हैं समंदर

दूसरों के हिस्से में

एक बूंद पानी भी हो

यह नहीं सह पाते हैं।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

-------------------------------------
यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Anonymous said...

wah bhai wah, kya likha hai...