हमने अपनी दरियादिली नहीं दिखाई।
चालाकियां समझ गये जमाने की
कहना नहीं था, इसलिये छिपाई।
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अपनी तकदीर से ज्यादा नहीं मिलेगा
यह पहले ही हमें पता था।
बीच में दलाल कमीशन मांगेंगे
या अमीर हक मारेंगे
इसका आभास न था।
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रात के समय शराब में बह जाते हैं
दिन में भी वह प्यासे नहीं रहते
हर पल दूसरों के हक पी जाते हैं।
अपने लिये जुटा लेते हैं समंदर
दूसरों के हिस्से में
एक बूंद पानी भी हो
यह नहीं सह पाते हैं।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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1 comment:
wah bhai wah, kya likha hai...
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