पर सड़कें जाम हैं,
कभी आती तो कभी जाती
बिजली के इंतजार में
खड़े उपकरण तमाम हैं।
तरक्की का मतलब कभी
समझ में नहीं आया,
चीजों की खरीद फरोख्त में ही
ग्राहक और सौदागरों का बाजार समाया,
अमीरों की चकाचैंध में
गरीबी का अंधेरा नहीं देखायी देता,
खाली है जो हाथ, किसे दिखते
समेट रहा है जो लूट का सामान
बस वही सर्वत्र दिखाई देता,
पसीना बहा रहा है कोई
कमाई किसी दूसरे के नाम है।
कहने को तरक्की तमाम है।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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