कई लोग महानायक हो जाते हैं,
जमीन पर कभी नहीं पड़ते उनके पांव
कभी खेतिहर तो कभी मजदूरी का करते अभिनय
गरीब के हमदर्द की भूमिका में
बटोरते हुए तालियां
किसान प्रेमी होने का दिखावा करते
पर देखा न होता कभी गांव,
फिर भी आम इंसानों की आखों में
फरिश्तों की तरह बस जाते हैं।
जमीन पर अब नहीं पैदा होते
अत्याचारों से जुझने वाले नायक,
दौलतमंदों की तारीफों में जुटे गायक,
हर कोई बस, पर्दे पर चमकने के लिये
जद्दोजेहद कर रहा है
सच में कारनामों को अंजाम देने की जगह
अफसानों में अदायें भर रहा है
बिना पसीना बहाये पैसा पाने की चाहत,
जल्दी कामयाबी से पाना चाहते दिल की राहत,
पूरा जमाना पका रहा है ख्वाबी पुलाव
इसलिये कागज के पन्नों पर
या पर्दे पर ही महानायक नज़र आते हैं।
जमीन का सच कड़वा है
उससे आम इंसान भी मुंह फेर जाते हैं।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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