तलवारें चलने के मंजर
जुबां से
गरीबों और बेसहारों पर
जमाने के दिये घावों का
बयां किये जा रहे हैं।
हर जगह बेसहारों के लिये
हमदर्दी दिखाते हैं,
अमन के लिये जंग करना सिखाते हैं,
अपने हाथ में लिये छुरा कर लिया है
उन्होंने पीठ पीछे
जहां में तसल्ली लाने के लिये
सादगी से वार किये जा रहे हैं।
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वह लोगों के दिल में लगा कर आग
शांति के लिये कर रहे हैं जंग,
गरीब की भलाई का ख्वाब दिखाते
अमीरों के करके रास्ते तंग।
दान लेने से ज्यादा स्वाभिमान
उनको लूटने में लगता है,
जिंदा लोगों से कुछ नहीं सीखते
मरों की याद में उनका ख्याल पकता है,
एक बेहतर ढांचा बनाने की सोच लिये,
उन्होंने कई शहर फूंक दिये,
भूखे के लिये रोटी पकाने के बहाने
शहीदों की चिता पर मेले लगाने का
उनका अपना है ढंग।
यह अलग बात है कि
गरीबों पर नहीं चढ़ता उनका रंग।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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