लड़ते रहो दोस्तो
ख़ूब लड़ो
किसी तरह अपनी रचनाएं
हिट कराना है
बेझिझक छोडो शब्दों के तीर
गजलों के शेर अपने
मन की किताब से
निकल कर बाहर दौडाओ
कुछ कवितायेँ हौं
तुम्हारे हृदय पटल पर
उन्हें भी यहां ले आओ
किसी तरह अपना नाम
दुनिया में चमकाना है
निडर होकर लड़ो
इस प्रचार की रणभूमि में
इतना लड़ो कि
तुम्हारे लिखे को पढने के लिए
लोगों की भीड़ जुट जाये
तुम्हारे लिखे डायलाग
शोले की तरह
जनमानस में छा जाये
किसी तरह
अपने निज-पत्रक
घर-घर पहुंचाना है
पर शब्दों के तीर से
किसी अपने का मन घायल न करना
गजलों के शेरों की दहाड़ से
किसी का दिल विचलित न करना
लड़ना मिलजुलकर (नूरा कुश्ती )
पर अपने मन मैले न करना
अभी तो शुरूआत है
हमें बहुत दूर जाना है
-------------------
कुछ तुम कहो
कुछ हम कहें
खामोशी से तो अच्छा है
हम मिलजुलकर लड़ने लगें
जो नहीं देखते हमें
वह भी देखने लगें
बदनाम होंगे तो क्या
नाम तो होगा
आओ मुकाबला फिक्स करने लगें
कभी तुम जीतो कभी हम
खिलाडियों में नाम तो होगा
अन्दर हंसो
पर बाहर दिखो गंभीर
ऐसा न हो लोग
असलियत समझने लगें
जब फीका हो आकर्षण
लोग हमसे बोर होने लगें
हम अपनी लडाई के
ढंग बदलने लगें
-----------
(यह व्यंग्य कविता काल्पनिक हैं और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है)
समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
तुम तय करो पहले अपनी जिन्दगी में चाहते क्या हो फिर सोचो किस्से और कैसे चाहते क्या हो उजालों में ही जीना चाहते हो तो पहले चिराग जलाना सीख...
-
देखता था शराब की नदी में डूबते-उतरते उस कलम के सिपाही को कई बार लड़खड़ाते हुए उसकी निगाहों में थी बाहर निकलने के मदद की चाहत दिखता था किसी...
5 comments:
आपकी कल्पना वास्तविकता के बहुत करीब है... हा हा हा हा...
बहुत दिन बाद ब्लॉग प्रविष्टि को पढ़ कर खुल कर हँसी आई!
बढ़िया :)
मान लिया यह किसी व्यक्ति या घटना से सम्बन्धित नहीं है :)
बहुत अच्छा लिखा है आपनें
बधाई , दीपक । आनन्द है । सुख भी?
फिल्मों में मियाँ-बीबी की लड़ाई के बाद इकरार के दृश्य भी कम आकर्षक तो नहीं होते...
Post a Comment