Jun 15, 2007

मौसम की पहली वर्षा में अपनी कविता हिट

तो बदहाल हो गया
तो निहाल हो गया
कविता लिखकर
निकला घर से बाहर
साईकिल पर पसीने में नहाते
बाज़ार के लिए
लौटने के लिए ज्यों ही तैयार हुआ
तेज आंधी और बादल
लड़ते-लड़ते चले आ रहे थे
इस मौसम की पहली बरसात में
रिम-झिम फुहारों से मुझे
नहला रहे थे
सोचा कहीं रूक कर
पानी से अपने बदन को बचाऊँ
फिर याद आया मुझे वह बहता पसीना
जो कविता लिखते समय आ रहा था
सोचा क्यों न उसके हिट होने का
लुत्फ़ बूंदों में नहाकर उठाऊं
कुछ पल अपने को "महाकवि"
होने का अहसास कराऊँ
मेरी कविता को पढने
स्वयं बदल आये थे
पानी साथ भरकर लाए थे
कविताएँ तो कई लिखीं
यह पहली कविता थी
जिसकी बूंदों में बादल भी
लगते नहाये थे
जो वर्ष ऋतू की पहली बूंदे
मेरे शहर में लाकर
मेरी कविता हिट करने लाए थे
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2 comments:

Udan Tashtari said...

महाकवि जी, अब जब साईकिल लेकर निकल ही पड़े हो तो कविता गाते हुऎ सभी सूखाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर डालिये. बहुत पुण्य मिलेगा.
:)

वैसे कविता वाकई हिट है.

Divine India said...

वाह… बारिश के ताजे अनुभव को सही रुप में पेश किया है… आज का मेरा अनुभव इससे मेल खा रहा है…!!!