"क्या वह तुम्हारा दोस्त है ?"बोस ने मुझसे पूछा ।
लोग कहते हैं -'तुम सोचते बहुत हो'।मैं खामोश रह जाता हूँ । आख़िर क्या जवाब है उनका ।
मैं कहता हूँ कि 'वह मेर दोस्त है ' तो फिर यह विचार करना भी होता है कि दोस्त के मायने क्या होते है और यह भी सोचना होता है उस पर क्या खरा उतरता है या नहीं ।
अगर कोई पूछे कि ' अमुक व्यक्ति को क्या जानते हो' तो भी असहज करत प्रश्न है कि किस तरह यह दावा किया जा सकता है कि उस व्यक्ति के बारे में सब कुछ जानते हैं ।वह व्यक्ति जो हमसे रोज मिलता है हमसे अच्छी तरह बात करता है उसका व्यव्हार दूसरों के बारे में कैसा हम नहीं जानते तो उसके बारे में हम अपनी राय किस तरह कायम कर सकते हैं ।
इसी तरह ' क्या वह तुम्हारा वफादार है ' जैसा प्रश्न मुझे असहज कर देता है । कोई व्यक्ति रोज मिलता है पर कैसे हम कैसे कह सकते हैं कि वह हमारे पीछे भी हमारे हित की बात करता है। कोई हमसे लाभ लेता है तो समझते हैं कि हमारे लिए वफादार हैं पर इस राय को स्थापित नहीं किया जा सकता है क्योंकि वफादार का पता तो तब लगता है जब उसके लाभ बंद हो जाये और फिर भी वह वफादारी दिखाए ।
मुझे खामोश देखकर बोस ने फिर पूछा -''तुम बताते क्यों नहीं कि क्या वह तुम्हारा दोस्त है"।
अब इस सवाल का मैं क्या जवाब देता, जबकि खुद नहीं जानता था। आख़िर बोस की बात का जवाब देना था , कुछ सूझ नही रहा था तो मैंने कहा-"बोस आप तो हुक्म दीजिए काम क्या है? करना क्या है । "
मैंने चेन की सांस ली कि मुझे उत्तर मिल गया था एक असहज प्रश्न से बचने के लिए ।
"नहीं...नहीं ऐसा नहीं चलेगा । तुम्हें जवाब तो देना होगा। मैंने सुना है कि वह तुम्हारा दोस्त है। तुम उसके ऑफिस और घर के ढ़ेर सारे काम कर देते हो पर वह तुम्हारे काम का नहीं है। " बॉस ने टेबल पर अपने हाथ झुकाते हुए कहा।
मैं फिर असहज हो गया । आख़िर मैंने बोस से कहा,- सर, आप तो काम बताईये , मैं हुक्म बजाने के लिए तैयार हूँ ।"
"तुम या तो बहुत चालाक हो या एकदम भले। "बोस ने कहा-"खैर कल तुम नहीं आये थे तो मैंने उससे तुम्हारा काम करने को कहा , उसने कहा कि वह तुम्हारा काम कतई नहीं करेगा। उसने यह भी कहा कि तुम उसके एक सहकर्मी हो दोस्त नहीं । "
बोस के कमरे से निकलकर उसकी सेक्रेटरी के पास गया। उसने मुझसे कहा-"क्या वह वाकई तुम्हारा दोस्त है? "
मैं फिर असहज हो गया । मुझे खामोश देखकर वह बोली -"कल मैंने बोस और उसके बीच की बातचीत सूनी थी , मुझे ताज्जुब है वह तुम्हारे साथ रोज मिलकर लंच करता है फिर भी तुम्हारी बुरायी कर रहा था। "
मैंने उसके बात का भी कोई जवाब नहीं दिया। मैं अपने कमरे में आया , वह भी वहीं अपना काम आकर रहा था , हम दोनों पास ही बैठते हैं । मुझे देखकर बोला -"बहुत देर कर दीं साहब के पास? क्या कह रहे थे?'
मैं खामोश था। वह बोला -"कल तुम नहीं आये तो पूछ रहे थे । मैंने कहा कि तुम्हारा काम मैं कर देता हूँ तो कहने लगे नहीं जिसका काम है वही करेगा। "
मैं उसे चुपचाप देखता रहा। मैंने उससे कहा-"चलो चाय पीकर आते हैं ।"
हम दोनों चाय पीकर आये। वहां दोनों के बीच सामान्य बातें हुईं । बोस और उसके सेक्रेटरी के बीच हुई बातचीत मेरे मन से हवा हो चुकी थी ।
अगले दिन मैं फिर बोस के पास पहुंचा । मैंने अपनी फाइलें उनको सौंपी वह खुश होकर बोले-" बहुत अच्छा काम किया है।"
फिर थोडी देर बाद बोले-"तुमने मेरी बात का कल जवाब नहीं दिया कि क्या वह तुम्हारा दोस्त है ?"
"यह बात तो वह जाने"_मैंने मुस्कराते हुए कहा-" पर मैं उसका दोस्त हूँ , मैं आपके प्रश्न के उत्तर में बस यही कह सकता हूँ ।"
"बहुत बढ़िया-"बोस ने कहा-" मैं बहुत खुश हूँ तुम्हारे इस जवाब से ।"
मैं उनके कमरे से बाहर आया ऐसा लग रहा था कि मेरे मन से कोई बड़ा बोझ उत्तर गया था।
3 comments:
दीपक जी,बहुत अच्छा लेख है।बधाई।
बहुत अच्छा लिखा दीपक जी।
वो कहानी तो आपने सुनी ही होगी, दो दोस्त और भालू वाली
बस
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