Aug 5, 2015

परबुद्धिजीवियों के मत से प्रभावित होना ठीक नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(parbuddhijiviyon ke mat se prabhavit hona theek nahin-hindi thought article)


                              जब से भारत में राजनीतिक बदलाव आया है तक से विदेशी विचाराधाराओं के कथित भारतीय परबुद्धिजीवी राजकीय और न्यायालयीन विषयों पर इस तरह हस्तक्षेप करने लगे हैं जैसे लोकतंत्र में हर विषय में उनको विरोध करने का अधिकार है या वह भारतीय विचाराधारा के विरोधी है इसलिये उनके पास नकारात्मक टिप्पणियां करने का विशेषाधिकार है। भारत में बरसों से एक राजकीय प्रबंध व्यवस्था है जिसमें स्थाई अधिकारी होते हैं जो विचाराधाराओं से प्रभावित हुए अपना काम करते हैं।  हालांकि यह देखा गया है कि जिस तरह भारतीय समाज की चिंत्तन शैली में परबुद्धिजीवियों के प्रचार का जो प्रभाव हुआ है उससे वह भी प्रभावित हैं पर इससे उन्हें पक्षपाती मानना गलत होगा।  यही अधिकारी समय समय समाज के हित की दृष्टि से अनेक निर्णय लेते हैं। उनसे कोई सहमत या असहमत हो सकता है पर उनके निर्णय को समाज हित से अलग नहीं किया जा सकता।  अभी हाल में एक पोर्न साईट यानि अश्लील अंतर्जालीय सामग्री पर राजकीय प्रतिबंध लगा जिस पर अनेक परबुद्धिजीवियों ने अपना विरोध जताया जिसका यह प्रभाव हुआ कि वह वापस ले लिया गया।
                              हम पौर्न साईट पर ही राज्य के प्रतिबंध पर राय नहीं कायम कर पाये पर  यह जरूर कहते हैं कि समाज सुधार और कल्याण में भी राजकीय हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये मगर क्या परबुद्धिजीवी-विदेशी विचाराधाराओं  से देश में स्वर्ग बनाने का सपना दिखाने वाले-इस बात को मानेंगे जो इस मसले पर उछल कूद कर रहे थे। यह परबुद्धिजीवी समाज के समग्र विकास में अपना अस्तित्व नहीं ढूंढ पाते इसलिये हमेशा ही गरीब, बीमार, महिला, बालक, वृद्ध, किसान, मजदूर तथा दलित नाम के शीर्षकों से समाज का उद्धार करने का सपना दिखाते हैं।  इनके पास समाज के विकास की कोई योजना तो होती नहीं है  इसलिये  हर शीर्षक के लिये अलग अलग परबुद्धिजीवी तैनातहोता है।  अधिक संख्या होने के कारण गपशप करने ओर पिकनिक मनाने के लिये  बहुत सारे लोग मिल ही जाते हैं।
                              सच तो यह है कि इन परबुद्धिजीवियों का समाज के हित से अधिक प्रचार से अपनी दैवीय छवि बनाने का लक्ष्य रहता है।  इन्हें पुरस्कार आदि भी मिल जाते हैं।  खासतौर से भारतीय राज्य प्रबंध तथा विचाराधारा के प्रतिकूल टिप्पणियां करने से उनको विदेश में भी सम्मानित किया जाता है।  वैसे भी भारतीय सम्मान से अधिक उनको विदेशी सम्मान प्रिय होते हैं।  हमारा मानना है कि ऐसे परबुद्धिजीवियों के समर्थन या विरोध के आधार पर न कोई निर्णय लेना या वापस लेना दोनों काम नहीं करना चाहिये।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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