आज से सावन का महीना प्रारंभ हो गया है। जब वर्षा ऋतु अपनी जलधारा से गर्मी की उष्णा को ठंडा करती है
तब मनुष्य ही नहीं वरन् हर जीव अपने अंदर
एक नयी स्फूर्ति का अनुभव करता है। सावन में संतुलित वर्षा देह को अत्यंत सुखद
लगती है पर मौसम विशेषज्ञों ने बता दिया है कि अनेक जगह वर्षा कहर बरसायेगी तो
अनेक जगह अल्प वर्षा की स्थिति भी
तरसायेगी। हमारा क्षेत्र दूसरी स्थिति
वाला है। उज्जैन में महाकाल के शिखर तक जल
पहुंचाने वाले बादल हमारे शहर तक आते आते सूख जाते हैं। हवा का प्रवाह रुक जाता है
और उमस त्रास का कारण बनती है। बादल शहर तक न आयें एक दुःख पर आकर न बरसें और फिर
हवा रोक कर उमस बरसायें तो मानसिक संताप के साथ बीमारियां भी बढ़ती हैं।
मनभावन होने के बावजूद सावन का महीना मार्गशीर्ष जैसा पवित्र नहीं
होता-श्रीमद्भागवत गीता में यही महीना श्रेष्ठ माना गया है। मौसम की दृष्टि से यह मार्गशीर्ष का
महीना न केवल सुहाना होता है वरन् अध्यात्मिक दृष्टि से भी उसका महत्व
है। सावन के महीने में जलाशय भर जाते हैं
और देव प्रतिमाओं पर जलाभिषेक का क्रम भी प्रारंभ होता है। धन्य है वह भक्त जो
प्रातःकाल ही मंदिरों में जाते हैं-उनकी वजह से सैर सपाटे करने वालों को अंधियारी
सड़कों पर चहल पहल मिलती है।
इस महीने को संभवतः इसलिये भी अध्यात्मिक दृष्टि से मार्गशीर्ष से कम महत्व
शायद इसलिये ही दिया गया क्योंकि इस माह में बीमारियों का भी प्रकोप रहता है। वैसे तो जिस तरह का खानपान हो गया है उससे बिमारियां
सदाबाहर हो गयी हैं पर इसके बावजूद सावन में चिकित्सालयों में कमाई की झड़ी लग जाती
है। जब तक उच्च चिकित्सा सरकार के दायरे में थी तब तक ठीक था पर अब तो निजी
क्षेत्र में तो इलाज का एक ऐसा उद्योग बन
गया है जिसमें संवेदनाओं का कोई स्थान नहीं है।
इस लेखक से उम्र में बड़ा एक बुद्धिमान मित्र बताता था कि बरसात में खाने
को लेकर मन में बड़ी उत्तेजना रहती है पर
पाचन की दृष्टि से मौसम अत्यंत संवदेनशील होता है।
हमारे यहां वर्षा के चार मास शांति से एक स्थान पर बने रहने के साथ ही
जलाशयों से दूर रहने की बात कहते हैं ।।
हमारे यहां स्थिति उलट गयी है। आज
खाये पीये अघाये लोगों को पिकनिक मनाने के लिये जलाशय भाते हैं। अनेक जगह भारी उमस में पका भोजन किया जाता है।
कहा जाता है कि पहले सड़के नहीं थी इसलिये ही वर्षा में पर्यटन वर्जित किया गया
था। हमें लगता है कि यह विकासवाद का अंधा
तर्क है वरना तो वर्षा में सड़कें अब भी लापता लगती हैं-उल्टे अब कचड़े के निष्पादन
के अभाव के उसके ढेर बांध बनकर पानी रोकते हैं और सड़कें नदियां बन जाती हैं। शहरों
में जिस तरह पानी से जूझते हुए लोग दिखते हैं उतना तो गांवों में नहीं दिखते।
बहरहाल हमारा मानना है कि सावन का महीना भले ही मनभावन है पर इस समय खान
पान और चाल चलन में सावधानी रखने का भी है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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