Aug 9, 2015

सिद्धांत धूल खाते हैं-हिन्दी कविता(siddhant dhool khate hain-hindi poem

)
पराया पैसे देखकर
वह पुण्य  की बात
भूल जाते हैं।

अपने खाते में रकम
बढ़ाने के लिये
बेईमानी में झूल जाते हैं।

कहें दीपक बापू आदर्श की राह पर
नहीं चला पाते
अपनी जिंदगी की गाड़ी
वही सेवक की उपाधि लिये
ठग बन जाते
 नारों की अल्मारी में
सिद्धांत धूल खाते हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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