May 5, 2007

बाबाओं पर माया की छाया:भक्त विचलित न हौं

एक समाचार चैनल ने सात बाबाओं को काले धन पर कानूनी रुप से सफेदी चढाने के लिए कमीशन की माँग करे हुए दिखाया गया है। यह एक स्टिंग आपरेशन है और जिसमें बाबाओ का रवैया एकदम उस आम आदमी की तरह है जो दिन रात माया के चक्कर में रहता है और जब उसे मानसिक रुप से शांति की जरूरत होती है वह इन बाबाओं की शरण में जाता है। मैं किसी भी बाबा का शिष्य नहीं हूँ और दूसरा यह भी कि एकदम धर्मभीरू हूँ मेरी अपने धर्म ग्रंथों में गहरी आस्था हैं क्योंकि मैं मानता हूँ कि उनमें ज्ञान, विज्ञान, भक्ती और मन में जीवन के प्रति रूचि उत्पन्न करने वाली पठनीय सामग्री है। इन बाबाओं के प्रवचन भी मैं सुनता हूँ और आगे भी सुनूँगा-क्योंकि मैं इनके बिना रह नही सकता। वैसे भी मेरी दिलचस्पी कथा के सार और उसका आनन्द उठाने से है कौन कर रहा है इसमें मेरी कोई रूचि नहीं होती। एक व्यक्ति के रुप में और एक भक्त के रुप में विचार स्वत: ही प्रथक प्रथक रुप से दिमाग में विद्यमान रहते है इन बाबाओं को जिस तरह स्टिंग आपरेशन में फंसाया गया है उससे मुझे आश्चर्य भी हुआ हंसी भी आयी। यकीनन इस तरह कोई ज्ञानी नहीं फंस सकता है और जो फंसे हैं वह ज्ञान का व्यापार करने वाले है पर उसका उपयोग अपने लिए नहीं करते। जिस तरह हलवाई मिठाई बना कर बेचता है पर स्वयं नहीं खाता वैसे ही कुछ हाल इन बाबाओं का हुआ है। हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों से ज्ञान निकालकर भक्तों के सामने प्रस्तुत करते हैं पर स्वयं धारण नहीं करते ।
इसके बावजूद मुझे चैनल द्वारा जिस तरह इसे प्रसारित किया जा रहा है उस पर कुछ आपत्ति है। यही चैनल वाले नेताओं, अभिनेताओं और क्रिकेट खिलाड़ियों के निजी आचरण पर यह कहते हुए टिप्पणी से बचते है कि उनकी इन बातों का राजनीती, अभिनय और खेल से कोई संबंध नहीं है । क्रिकेट खिलाड़ियों को रेम्प पर नाचते हुए दिखाते हुए चैनल वाले लच्छेदार भाषा का उपयोग करने में जरा भी झिझकते नहीं है। क्रिकेट खिलाड़ियों के विज्ञापन करने पर भी चैनल वाले कोई आपत्ति नही करते, पैसा कमाना उनका व्यक्तिगत अधिकार है और इससे उनके खेल पर कोई फर्क नहीं पडा। जबकि कुछ लोग मानते है कि उस पैसे से इन खिलाड़ियों की मानसिकता पर असर पड़ता है, सभी खिलाडी उस पैसे का कहीं और जगह व्यापार और विनियोजन में लगाते हैं जिनका ध्यान उस समय भी रहता होगा जब वह खेलते हैं। बाबाओं को परदे पर दिखाते हुए चैनल वाले जब "भक्तों के ठगा जा रहा है" , "भक्त हतप्रभ रह गये हैं " और "धर्म के नाम पर व्यापार " जैसे नारे लगा रहे हैं। कहीं भीड़ एकत्रित कर बाबाओं के खिलाफ विष वमन कराया जा रहा है, और जाने-अनजाने कुछ इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे समूचा संत समाज ही भ्रष्ट हो। कभी कहते हैं हैं कि "अभी तक इन बाबाओं को पकडा नहीं गया " वगैरह वगैरह । इन चैनल वालों ने अपनी टेलीफोन लायिनें दर्शकों के लिए खोल रखी है पर नारद पर अपने भी सब ब्लोग खुले पडे हैं और इस समय फ्लॉप हालत में हैं तो सोचा अपनी बात वहीं रख देते हैं-इतनी लंबी और सार्थक बात चैनल वाले तो रखने से रहे, उनके अनुकूल नहीं है तो बिल्कुल नहीं।
मैं इन चैनल वालों से कहना चाहता हूँ कि अभी तो तुम्हारी ख़बर की सत्यता की पुष्टि होना बाकी है और दूसरा यह कि अनावश्यक रुप से उन बाबाओं के ज्ञान और भक्तो को बीच में मत लाओ , उनकी निजी गलतियों-वह भी जिनका प्रमाणीकरण होना शेष है -से भक्तों का क्या लेना देना । जो इन संतों से आर्थिक लाभ लेते हैं वह भक्त अभी भी उनके पास रहेगा और जो कथा सुनकर दूर से ही चला जाता है उसे इनकी निजी बातों से कोई लेनादेना नहीं होता- उनके विश्वास को चुनौती देना बेकार है। इन भक्तों के पास इनके प्रवचन सुनने के आलावा कोई चारा नहीं है । इस देश में स्वतंत्रता के बाद जो व्यवस्था बनी है उसने देश में तमाम तरह की विकृतियाँ फैली हैं और उससे आदमी में मानसिक तनाव रहने लगा है और इन बाबाओं के सत्संग से उन्हें शांति मिलती है। सत्संग एक ऐसा टानिक है इस मानसिक तनाव को दूर कराने का काम करता है। चैनल का काम है खबर देना उसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है पर इस खेल में धरम और ज्ञान को नहीं लाना चाहिए । जहां तक दो नंबर के धंधों का सवाल है तो इसके लिए कानून अपना काम करता है और अदालतें भी अपनी भुमिका निभाने में सक्षम हैं।
अब मेरी बात भक्तों से ! अपने धर्मग्रंथों में जो ज्ञान, विज्ञान और भक्ति से परिपूर्ण जो रस है उसका इस मायावी दुनिया से कोई संबंध नहीं है, पर माया ही उस रसस्वादन कराने वाली शक्ति है। जब हम माया के सतत संपर्क से उकता जाते हैं तब ज्ञान और भक्ती का रस ही हमें एक नयी शक्ति प्रदान करता है। जब हम उस पर डूब जाते हैं तो माया ही है जो फिर हम हमला करती है और हम उसके आगे लाचार हो जाते हैं । जिस तरह हम भक्ती और माया के अंतर्द्वंद को समझते हुए जीते हैं उसकी मिसाल कहीं और नही मिलती । भारत में संतों और बाबाओं का एक बहुत बड़ा समाज है। कई संत ऐसे हैं जो सब कुछ त्याग कर अपनी तपस्या में तल्लीन रहते है तो कुछ ऐसे भी है जो निर्लिप्त भाव से माया के साथ रहते हुए उसे समाज में लगाते है पर वे कोई ऐसा काम नहीं करते जो अनैतिक हो । जो काम इन बाबा और संतों ने किया है वह एकदम अनैतिक पर इससे अपने देश के समूचे संत समाज को संदेहास्पद मानना गलत होगा, क्योंकि नैतिकता और सत्य के रास्ते पर चल रहे संतों के त्याग, तपस्या और विश्वास पर ही हमारा समाज टिका है । जो हुआ है उसके हमारे दर्शन और आध्यात्म से कोई लेना देना नहीं है । जो संत स्टिंग आपरेशन में फंसे हैं उनके भक्तों को भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है -इन संतों के अनुसार भी भक्त की परीक्षा माया द्वारा ली जाती है। आप यह मान सकते हो कि यह माया की लीला है और इसमें अपने भक्ती भाव से विचलित होने के जरूरत नहीं है।

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