समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
May 24, 2007
झूठी शान की खातिर
रुप रचाएं साधू का
चाल, चरित्र और चाहत असाधु की
यज्ञ करें राष्ट्र के कल्याण के लिए
मूहं मैं राम, बगल में छुरी
बगला भगत पर टिकी धर्म की धुरी
कौन किसको साधे
कौन किससे सधे
सबने निज स्वार्थ ओढ़ लिए
माया के अँधेरे में भटक रहे हैं
एअर कन्डीशन कमरे में सांस ले रहे हैं
भ्रम,भय और भ्रष्टाचार का अँधेरा फैलाकर
लोगों को रोशनी के अहसास बैच रहे हैं
खालीपन है सबकी आँखों में
इन्सान तरस रहा है
इन्सान देखने के लिए
कहीं समंदर का पानी मीठा बताएं
कभी भगवान को दूध पिलायें
कही मूर्ती के आंसू टपक्वायें
इंसानियत और ईमान ढूंढते थक गये
किसी इन्सान में देखने के लिए
कौन कहता है कि
मजहब नहीं सिखाता बैर रखना
दुनियां में हर जंग पर
धर्म-मजहब का नाम है
इंसानों के बीच खडी है दीवार
इनके नाम पर
सब लड़ रहे है अपने -अपने
पंथ के गौरव के लिए
बनाया था इश्वर ने
इन्सान को आजादी से
जीने के लिए
उसने स्वर्ग के मोह में
अपने को गुलाम बना लिया
जात , भाषा और धर्म की
झूठी शान की खातिर लड़ने के लिए
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