May 25, 2007

चलना नाम है ज़िन्दगी का

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थका हुआ शरीर उदास मन
सूनी आँखें और कांपती जुबान
पूछते है पता वह सुख और ख़ुशी का
ओढ़े हैं लिबास स्वार्थों का
बैठने और सोने को माना है आराम
हवा में उड़ने की चाह
एक-एक कदम चलना
प्रतीक माना बेबसी का
आकाश की तरफ देख उसे छूने की चाह
जिस पर सदा जीवन टिका है
यकीन नहीं उस जमीन का
भ्रम में जिए जा रहे हैं
सुख के लिए दुःख के
रास्ते जा रहे हैं
क्षय करते हैं बदन का
पर ठानी है जिसने
एक-एक कदम
जीवन-पथ पर आगे बढाने की
अपने हाथ से युध्द लड़ने की
सोने की तरह निखरने के लिए
अपने उर्जा से उत्पन्न
अग्नी में जलने की
चहकता है उसका मन
तना रहता है बदन
बनता है घर ख़ुशी का
उनके क़दमों पर सुख और आनन्द
बिछ्ता है कालीन की तरह
वह नहीं थामते कभी दामन
बेबसी का
उनके लिए
चलना नाम है जिन्दगी का
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1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।भाव बहुत सुन्दर हैं।

अपने उर्जा से उत्पन्न
अग्नी में जलने की
चहकता है उसका मन
तना रहता है बदन
बनता है घर ख़ुशी का
उनके क़दमों पर सुख और आनन्द
बिछ्ता है कालीन की तरह
वह नहीं थामते कभी दामन
बेबसी का
उनके लिए
चलना नाम है जिन्दगी का