गुरुजी को मलाल हो गया
जिसको पढ़ाया था दिल से
वह यमराज का दलाल हो गया
गुरुजी को मरते देख
हैरान क्यों हैं लोग
गुरू दक्षिणा के रुप में
लात-घूसों की बरसात होते देख
परेशान क्यों है लोग
यह होना था
आगे भी होगा
चाहत थी फल की बोया बबूल
अब वह पेड युवा हो गया
राम को पूजा दिल से
मंदिर बहुत बनाए
पर कभी दिल में बसाया नहीं
कृष्ण भक्ती की
पर उसे फिर ढूँढा नहीं
गांधी की मूर्ती पर चढाते रहे माला
पर चरित्र अंग्रेजों का
हमारा आदर्श हो गया
कदम-कदम पर रावण है
सीता के हर पग पर है
मृग मारीचिका के रूपमें
स्वर्ण मयी लंका उसे लुभाती है
अब कोई स्त्री हरी नहीं जाती
ख़ुशी से वहां जाती है
सोने का मृग उसका उसका हीरो हो गया
जहाँ देखे कंस बैठा है
अब कोइ नहीं चाहता कान्हा का जन्म
कंस अब उनका इष्ट हो गया
रिश्तों को तोलते रूपये के मोल
ईमान और इंसानियत की
सब तारीफ करते हैं
पर उस राह पर चलने से डरते हैं
पर उस राह पर चलने से डरते हैं
बैईमानी और हैवानियत दिखाने का
कोई अवसर नहीं छोड़ते लोग
आदमी ही अब आदमखोर हो गया
घर के चिराग से नहीं लगती आग
हर आदमी शार्ट सर्किट हो गया
किसी अवतार के इन्तजार में हैं सब
जब होगा उसकी फ़ौज के
ईमानदार सिपाही बन जायेंगे
पर तब तक पाप से नाता निभाएंगे
धीरे धीरे ख़ून के आंसू बहाओ
जल्दी में सब न गंवाओ
अभी और भी मौक़े आएंगे
धरती के कण-कण में
घोर कलियुग जो हो गया
3 comments:
अच्छा लिखा है आपने.
वाह क्या वर्णन है…दशा और दिशा दोनों का अद्भुत संगम किया है भावनाओं में…इतिहास के काला तत्व को नये रुप में पढ़कर अच्छा लगा…।
अति सूंदर! बेहतरीन रचना के लिये बधाई।
सुनीता चोटिया(शानू)
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