समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
May 29, 2007
कुछ न लिखने से तो कविता लिखना ही अच्छा
पिछले कई दिनों से मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोग ब्लोगों पर आने वाली कविताओं पर ज्यादा खुश नहीं होते उनको लगता है कि ऐसे लोग केवल जगह घेर रहे हैं। जैसे-जैसे ब्लोगों के संख्या बढ रही है वैसे वैसे कविताओं की रचनाएं में भी बढ़ना स्वाभाविक हैं । इस पर नाखुश होने की बजाय ऐसे कवियों को प्रोत्साहन ही दिया जाना चाहिए जो विपरीत हालतों में कुछ लिख तो रहे हैं, और हिंदी ब्लोग अभी अपने शैशव काल में है और उसे इस तरह की रचनाओं की आवश्यकता भी है । अभी तो कई लोगों को यही नहीं पता कि हिंदी में ब्लोग लिखे कैसे जा सकते हैं । मैं अपने आस-पास के लोगों को जब अपने ब्लोगों के बारे में बताता हूँ तो वह सुनते हैं पर उनके कोई ऎसी प्रतिक्रिया नहीं देते जिससे मेरा उत्साहवर्धन हो । स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है और लोग जब मुझसे मिलते हैं तो उनकी प्रशंसा करते हैं। वह मेरे रचना पर मेरे सामने सकारात्मक और कुछ लोग नकारात्मक प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैं। जितना पिछले तीन माह में जितना मैं इन ब्लोगों में लिख चुका हूँ उतना तो मैं दो साल में भी नहीं लिख पाता , पर नये शौक़ की वजह से यह कर पा रहा हूँ पर वास्तविकता यह है कि इसमें जितनी मेहनत है उतनी कोई करना नहीं चाहेगा । कोई आर्थिक फायदा न हो तो ऐसा मनोरंजन भी कौन चाहेगा ?
मेरे मित्र मुझसे हमेशा कहते हैं तुम तो कवितायेँ न लिखकर केवल व्यंग्य, कहानी और हास्य-व्यंग्य लिखा करो । मेरे एक मित्र है जो अक्सर मुझे मेरी गद्य रचनाओं पर दाद देते हैं पर जब कोई कविता छपती है तो उसकी चर्चा नहीं करते । एक बार मैंने उनसे पूछा था कि आप कभी मी कविताओं पर दाद नहीं देते क्या बात है?
तो वह मुझसे बोले कि -" तुम जो कवितायेँ लिखते है उनमें विषय अत्यंत गूढ़ होते है या एकदम हलके और उनका प्रस्तुतीकरण भी काव्यात्मक कम गद्यात्मक अधिक होता है और मुझे लगता है कि तुम मेहनत से बच रहे है और दूसरा यह कि इतनी गूढ़ बात पर मैं उससे ज्यादा पढना चाहता हूँ जितना आपने लिखा होता है, तुम्हारे गद्य रचनाओं का तो मैं प्रशंसक हूँ । "
उनकी बात सुनकर मैं हंस पडा तो वह बोले-'' मैं सच कहूं कि तुम गद्य ही लिखा करो, और लोग भी तुम्हें गद्य लेखक के रुप में ही देखना चाहते हैं। कविता तो कोई भी लिख सकता है ।"
कई पत्रिकाओं के संपादक भी मुझसे पद्य रचनाओं की बजाय गद्य रचनायें ही माँगते हैं। फिर भी मौका मिलते ही मैं कविता लिखने से बाज नहीं आता, क्योंकि कई बार कविता विषय कोई संजोये रखने के काम भी आती है। कई बार ऐसे अवसर आते हैं कि किसी घटना को देखकर कोई विचार पैदा होता है तो उस समय इतना समय नही होता कि या मन नहीं होता कि कोई गद्य रचना लिखी जाये तब कविता में उसे लिखकर संचित किया जाना भी कोई आसान कम नहीं है पर अगर उसमें दक्ष हैं तो गद्य लेखन भी आसान होता है ।
अभी मेरे इसी ब्लोग पर पिछली रचना "हाँ, मैं उसे जानता हूँ" मेरे पास रजिस्टर में पद्य के रुप में दर्ज थी और उसे मैं ब्लोग पर उसी रुप में लिखने वाला था पर मुझे लगा कि इसे थोडा विस्तृत ढंग से लिखने का प्रयास करना चाहिए, और तब मैंने यह महसूस किया कि अगर मैं उस समय इस पर कविता नहीं लिखता तो शायद इस गद्य के रुप में प्रस्तुत नहीं कर सकता था।जब मैंने युनिकोड में लिखने का प्रयास शुरू किया तो सबसे पहले कविताएं लिखीं थी और आज भी जब मैं वह पढता हूँ तो लगता है ब्लोग पर जो शुरूआत में कवितायेँ लिख रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिऐ-इस बात के लिए कि वह विपरीत परिस्थतियों में भी लिख रहे हैं । यह देश बहुत विशाल है उतना ही व्यापक हिंदी भाषा का प्रभाव है। हिंदी में लिखने वाले कई नए लेखकों तो यह पता ही नहीं है कि ब्लोग क्या चीज है और हिंदी के गोदरेज टाईप का उनका ज्ञान बहुत अच्छा है, अपने अनुभव से मैं यह जान गया हूँ कि उनके लिए युनिकोड में लिए एक नया अनुभव होगा और बिना किसी प्रोत्साहन के वह शायद ही इतनी मेहनत करने को तैयार हौं, खासतौर से जब इसमें किसी आर्थिक लाभ की कोई ज्यादा आशा तत्काल न हो।
अत: नए लोगों को उनके कविताओं पर भी दाद अवश्य दीं जानी चाहिए। जहाँ तक मेरी काव्य रचनाओं का सवाल है वह अपने विषयों को सजोये रखने के लिए करता ही रहूँगा । अभी मुझे समय लगेगा बड़ी रचनाओं को -जैसे कहानी व्यंग्य , और आलेख-प्रस्तुत करने में समय लगेगा क्योंकि वह एक बैठक में लिखे नहीं जा सकते , और उसे पहले लिखने से पहले कागज पर उतरना जरूरी होगा। मैंने अभी तक जो लिखा है वह सीधे कंप्युटर पर टाईप किया है और कभे स्वयं ही लगता है कि मैं इसे बेहतर करूं। यह तय है पहले कागज़ पर लिख कर उसे फिर कम्प्यूटर पर उतारने में मजा आयेगा। फिलहाल अपने हाथ को साफ करने के लिए कवितायेँ लिख रहा हूँ और चाहता हूँ कि जो नए लिखने वाले कवितायेँ लिख रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।
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2 comments:
आप की सकारात्मक सोच अच्छी लगी।वास्तव में कविता लिखना लिखने वाले की रूची पर निर्भर करता है। इस मे समय की भी बचत होती है।अपनी भी और पाठक की भी।इसे प्रोत्साहन देना ही चाहिए।
ब्लॉगरी में कविता के लिये जगह है और अच्छी खासी है. पर एक ही तरह का पाठक दोनों पर शायद एक जैसे जोश से टिप्पणी न कर पाये.
फण्डा ये है कि आप लिखें - जबरी लिखें.
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